Tuesday, January 13, 2009

प्यार से प्यारा यार , भाग-२

कम्मो ने शिल्पा को अपने होटल के कमरे में खाने पर आमंत्रित किया , दोनों समय पास करने के लिए कहानियाँ सुनाने लगीं , कम्मो ने उसे अपने कमरे पर ही रोक लिया , तब अनुभव सुनाये हुए शिल्प बोली-
-ठीक है सुनो, राहुल और संगीता के बीच पिछले तीन बरस से डेटिंग का सिलसिला ठीक-ठाक बल्कि यूँ कहिए बहुत अच्छा चल रहा था। अचानक राहुल कुछ फासला रखने लगा। संगीता को उसकी यह हरकत समझ में नहीं आई। वह सोचने लगी कि आखिर उससे क्या गलती हो गई?
दरअसल, अन्य लड़कियों की तरह संगीता को भी नहीं मालूम था कि वाई-क्रोमोसोम प्राणी बहुत अजीब होते हैं। वे सिंगल स्टेटस को खोने से बहुत डरते हैं। संगीता ने शादी का जिक्र किया था और तभी से राहुल में बदलाव आने लगा था।
शादी लड़कियों के लिए तो एक मील का पत्थर होता है जबकि लड़कों के लिए यह स्वतंत्र जीवन को खोना होता है और इसलिए यह तालमेल बिठाना उनके लिए कठिन होता है। बहरहाल, अगर संगीता इस बात को समझ जाए कि पुरुषों का दिमाग किस तरह से कार्य करता है, तो वह इस कठिन राह से आसानी से गुजर जाएगी औरराहुल हमेशा के लिए उसका हो जाएगा।
कम्मो- वाव , तब क्या हुआ ?
शिल्पा- डेट की रातों को दोस्तों की महफिलों में तब्दील करने का मतलब यह है कि वह आपको बतलाना चाह रहा है कि अब आप उसकी वरीयता सूची पर नहीं हैं और वह आपसे शादी नहीं करना चाहता।
बातचीत के दौरान सर्वनाम का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण होता है, खासकर जब मुद्दा संबंध का हो। लड़कियाँ जब 'मैं' की जगह 'हम' का प्रयोग करने लगती हैं तो लड़कों को लगने लगता है कि उनकी आजादी और कुँवारेपन के दिन खत्म होने जा रहे हैं। इस 'हम' से लड़के इस वजह से भी डरते हैं कि उन्हें लगता है कि लड़कियाँ अब उनके जीवन को नियंत्रित करने जा रही हैं।
इस समस्या से बचने का बेहतर तरीका यह है कि अपनी गुफ्तगू में आप 'हम' का इस्तेमाल बहुत सावधानीपूर्वक करें। मसलन, यह कहने की जगह 'इस संडे हम क्या कर रहे हैं?' यह कहें 'मैं सोच रही थी इस संडे अगर हम फिल्म देखने चले जाएँ, तो अच्छा रहेगा, तुम्हारा क्या ख्याल है?' इस तरह सर्वनाम का प्रयोग करने से आप यह नहीं दर्शातीं कि आप उसके जीवन को नियंत्रण में करना चाह रही हैं।
विश्वास दिलाएँ कि आप दो नहीं एक कैम्प पर यकीन करती हैं
शादीशुदा जीवन में प्रवेश करने से लड़के इसलिए भी डरते हैं कि उनके परिवार के सदस्यों से आने वाली बहू का रवैया न जाने किस किस्म का हो? इसलिए इस संदर्भ में भी लड़के को विश्वास दिलाना आवश्यक होता है। खासकर इसलिए भी क्योंकि लड़का ऐसी स्थिति में नहीं होना चाहता जहाँ उसे परिवार या आप में से किसी एक की तरफदारी करनी पड़े।
यही बात उसके दोस्तों के संदर्भ में भी लागू होती है। यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि एक लड़के के जीवन में उसके दोस्त और उसकी गर्लफ्रेंड दो महत्वपूर्ण कैम्प होते हैं। उसे ऐसा मजबूर न किया जाए कि वह एक कैम्प का होकर रह जाए। कहने का अर्थ यह है कि दोनों कैम्पों में तालमेल बिठाने की आवश्यकता है।
आजकल यह फैशन नहीं रहा है कि प्रपोज सिर्फ लड़का ही करे। लड़की भी प्रपोज कर सकती है। लेकिन प्रपोज जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। अचानक या बिना सोचे-समझे या हालात को साजगार बनाए प्रपोज करने से लड़का असमंजस में पड़ सकता है। इसलिए प्रपोज करने से पहले स्थिति को टटोलकर देख लेना चाहिए।
मसलन, बातों-बातों में आप उससे यह जिक्र करें कि किस तरह आपकी सहेली और उसके ब्वॉयफ्रेंड ने जीवनभर साथ रहना तय किया है। इस पर उसकी प्रतिक्रिया को गौर से देखें। उसकी प्रतिक्रिया से आपको यह अंदाजा हो जाएगा कि वह स्वयं शादी के लिए तैयार है या नहीं।
अगर आप भी अपनी गर्लफ्रेंड के होंठों पर मुस्कान देखना चाहते हैं तो हम बताते हैं उसके लिए कुछ टिप्स, जिससे आपकी वो खुश हो जाएँगी और उनकी खुशी से बढ़कर आपको और क्या चाहिए? तो लीजिए- उनसे कहें कि वह खूबसूरत है कभी भी उन्हें हॉट या सेक्सी न कहें। उनका हाथ कुछ सेकंड के लिए जरूर थामें। प्यार से उनके सिर को चूमें नींद से जगाने के लिए उनकी ही रिकॉर्ड आवाज को उन्हें सुनाएँ। उन्हें बराबर यह बात कहते रहें कि आप उन्हें कितना प्यार करते हैं।
अगर वह परेशान है तो उन्हें गले लगाकर इस बात का एहसास दिलाएँ कि वह आपके लिए कितना मायने रखती है। उनकी छोटी-छोटी बातों का भी ख्याल रखें, क्योंकि यह प्यार का बहुत जरूरी हिस्सा होता है।
कभी-कभी उनके पसंदीदा गाने भी उन्हें सुनाएँ, चाहे आपकी आवाज कितनी भी खराब क्यों न हो। उनके दोस्तों के सभी कुछ समय बिताएँ।उनके नोट्स आप तैयार कर दें। अपने परिवार के लोगों और दोस्तों से भी उन्हें मिलाएँ, इससे आपके प्रति विश्वास बढ़ेगा।
उनके बालों को प्यार से सहलाएँ, इससे उन्हें सुकून मिलेगा। कभी-कभी आप उनके साथ मस्ती भरा खेल भी खेलें, जैसे गुदगुदाना, गोद में उठाना, कुश्ती करना।पार्क लेकर घूमने जाएँ और अपने दिल की बातें कहें। हँसाने के लिए जोक्स सुनाएँ।
आधी रात को उनकी खिड़की के नीचे छोटे से पत्थर का टुकड़ा फेंकें और उन्हें बताएँ कि आप उन्हें कितना 'मिस' कर रहे हैं। सोते वक्त उनके नीचे गिरते हाथों को अपने हाथों में ले लें।
अपने नामों को पेड़ पर लिखकर घेरें। जब वह आप में पूरी तरह खो जाए तो उसे प्यार से चूमें। उन्हें कभी-कभी अपने कंधों पर उठाएँ। उनके लिए फूलों का तोहफा ले जाएँ।
अपने दोस्तों के बीच भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा आप अकेले में करते हैं।उनकी आँखों में देखकर मुस्कराएँ।
आपकी जो तस्वीर उन्हें पसंद हो उन्हें जरूर दें।उनके साथ डांस करें, अगर म्यूजिक न हो तो भी।बारिश में उन्हें चूमें। हमेशा अपने प्यार का इजहार करते रहें।
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मानते आ रहे हैं कि प्यार या शादी एक बंधन है। प्यारा-सा बंधन। अजीब बात है कि बंधन भी प्यारा-सा होता है अर्थात हथकड़ी भी प्यारी-सी होती है। अरे नहीं साहब, ये वो बंधन नहीं, ये जरा अलग किस्म का बंधन होता है।

अच्‍छा तो अब बंधन भी अलग-अलग किस्म के होने लगे हैं। सब बेवकूफ बनाने के काम हैं। हथकड़ियाँ चाहे हाथों में लगी हों या पल्लू में, हथकड़ियाँ चाहे लोहे की हों या सोने की, कंगन जैसी हों या गले में मंगलसूत्र जैसी या न मालूम कैसी-कैसी। खुद लगा ली हो हथकड़ियाँ या किसी के प्यार में पड़कर उसी से कहा कि लगा दो हथकड़ियाँ...प्लीज।

प्रेमी की भावना होती है कि तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, पर किसी गैर को चाहोगी तो मुश्किल होगी। अबे मजनूँ मियाँ जब वो तुमको ही नहीं चाहती तो टेंशन काहे को लेते हों। प्यार और चाह में फर्क करना सीखो। प्यार स्वतंत्रता का पक्षधर है और चाहत तुम्हारे दिमागी दिवालिएपन की सूचना। जरा प्यार करके तो देखो। थोड़ा-सा प्यार हुआ नहीं कि अधिकार जताने लग जाते हो। जैसे बस अब ये मेरी है। मेरी के लिए जीना भी तो सीखो, मरने की झूठी कसमें मत खाओ।

आमतौर पर पुरुष का चित्त खानाबदोश होता है। घर बनाना या बसाना तो स्त्री ने सिखाया है वरना यूँ ही जिंदगी मारी-मारी फिरती थी। तब समझो इस मनोविज्ञान को कि प्रेमिका की भावना क्या होती होगी। प्रेमिका हर चीज में स्थायित्व ढूँढती है। प्रेमी की हर हरकत पर वह नजर रखती है कि कहीं बदल न जाए सनम।



इसीलिए तोड़ दो वे सारे बंधन जिसमें प्रेम नहीं। निश्चत तौर पर ऐसा कहना बहुत आसान है लेकिन ऐसी सोच सभी की हो जाएगी तो 99 प्रतिशत संबंध टूट जाएँगे।



आजकल की लड़कियाँ सोच-समझकर प्रेम करने लगी हैं। पहले तो बगैर सोचे-समझे प्रेम हो जाता था। आँख मिली नहीं ‍कि प्रेम हुआ, पहले का माहौल भी साफ-सुथरा और विश्वास योग्य था, आजकल जिसने बगैर सोचे भरोसा किया तो समझे लॉटरी जैसा काम है खुल गई तो लाख की वरना जिंदगी खाक तो है ही।

अब सवाल यह उठता है कि प्रेम या विवाह क्या बंधन है? ओशो मानते हैं कि यदि प्रेम नहीं है तो फिर बंधन ही होगा, क्योंकि आपस में प्रेम होना अर्थात स्वतंत्रता और आनंद का होना है किंतु यदि झूठ-मूठ का प्रेम है दिखावे का प्रेम है तो फिर वह प्रेम कैसे हो सकता है, महज आकर्षण, चाहत या समझौता। और यह ज्यादा समय तक नहीं चलता, बहुत जल्द धराशायी हो जाता है। यदि धराशायी नहीं होगा तो जिंदगी एक घुटन के सिवाय कुछ नहीं।

इसीलिए तोड़ दो वे सारे बंधन जिसमें प्रेम नहीं। निश्चत तौर पर ऐसा कहना बहुत आसान है लेकिन ऐसी सोच सभी की हो जाएगी तो 99 प्रतिशत संबंध टूट जाएँगे। ओशो कहते हैं कि सांसारिक प्रेम में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं- इसे समझें और ‍इसमें जिएँ। प्रेमिका या पत्नी से कुछ समय के लिए दूरी बनाओ, फिर नजदीक आओ और फिर ‍दूरी बनाओ। यह मिलना और बिछड़ना ही प्रेम को रिजनरेट और रिफ्रेश करके रखेगा।
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कुदरत का सबसे अनमोल तोहफा प्यार है। यह बाँटने से और बढ़ता है तथा अपनी भीनी-भीनी महक को प्रकृति में चारों ओर बिखेर देता है। यूँ तो प्यार के प्रेम, इश्क, लव रोमांस, चाहत, मोहब्बत जैसे कई प्यारे नाम हैं पर प्यार की खूबसूरती पर इन नामों का कोई असर नहीं होता है। लोग बदल जाते हैं, पर प्यार कभी नहीं बदलता है। यह तो ऐसा संक्रामक रोग है जो देखने से भी फैलता है और कभी भी, कहीं भी, किसी को भी हो सकता है।

कुछ लोग कहते हैं कि प्यार किया नहीं जाता, बस हो जाता है। पर प्यार देखकर, समझकर तो किया ही जा सकता है। प्यार क्या है, किससे करें, कब करें ऐसे कई अनसुलझे सवाल हैं कि अगर जानबूझकर इन्हें नजरअंदाज किया जाए तो अंत में निराशा तथा दिल के टूटने की आहट ही सुनाई देती है। कई बार जिएँगे तो साथ-मरेंगे तो साथ ऐसी कसमें खाकर उसे निभाने के वादे तो लोग कर लेते हैं लेकिन प्रेम में परवान चढ़ते-चढ़ते जब जिंदगी की हकीकत से सामना होता है तो सारे सपने उनके कदमों तले टूटकर बिखर जाते हैं और कुछ दिनों का इश्क जीवनभर के अश्क बन जाता है।

यह स्थिति स्वाभाविक भी है क्योंकि जब कोई किसी से सच्चा प्रेम करता है एवं केवल सामने वाले के रूप-रंग से आकर्षित नहीं होता बल्कि उसकी सीख से प्रेम करता है तो वह कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं करता है कि वह जिसके इश्क में गिरफ्तार है, वह उसके प्रति क्या सोचता/सोचती है। वह वफादार है या नहीं। उसकी आने वाले भविष्य में क्या योजनाएँ एवं संभावनाएँ हैं। इसी का परिणाम होता है- मोहब्बत में बेवफाई। हालाँकि सभी के साथ ऐसा नहीं होता है कि इश्क में ठोकरें ही मिलें, पर कोई जानबूझकर कुएँ में क्यों कूदे।

कई आशिकों की गाड़ी जब प्यार के प्लेटफार्म से गुजरकर शादी के स्टेशन पर रुकती है तो बिना टिकट के यात्री की तरह इनकी सचाई भी सामने आने लगती है। ऐसे में समझदार माँ-पिता केवल प्यार के नाम पर ही बेटे-बेटी की शादी उस लड़के-लड़की से करने को तैयार नहीं होते हैं जो केवल प्यार का दम भरता है। ऐसे मामलों में अगर कभी शादी हो भी जाए तो लोग कुछ दिनों तक तो मदद करते हैं, फिर तो दोस्त भी कन्नी काट लेते हैं।



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ऐसे में विवाह भी नाकामयाब हो जाता है और छोटी-सी गलती नासूर बनकर जीवनभर दर्द का अनुभव कराती है। कहने का अर्थ यह है कि जिस प्रकार पैसा कमाने के लिए शिक्षा, अनुभव एवं सीखना आवश्यक है, उसी प्रकार प्रेम को जीवन पर्यन्त सुंदर बनाए रखने के लिए भी यह जरूरी है कि हम इसके बारे में देख लें, परख लें एवं धोखा खाने से संभवतः बचने का प्रयास करें।

यूँ तो प्यार में चोट देने वाला, पहचान के बाद भी चोट दे सकता है। पर फिर भी थोड़ी खोजबीन जरूरी है। आपने देखा भी होगा कि कोई आपको प्यार तो बहुत करता है पर कह नहीं पाता या फिर हमेशा ही जताता रहता है। ऐसी स्थिति में कभी-कभी आप बड़ी उलझनों में भी घिर जाते हैं। इन समस्याओं से बचने और अपने प्यार को परखने के लिए कुछ सामान्य से उपाय करके देखिए-

* अगर सामने वाला चाहता है और आपके लिए कुछ भी करने को तैयार है परंतु इस बात को अहसान बताकर याद दिलाता रहता है तो समझ लेना चाहिए कि वह आपसे प्यार नहीं करता है और आपको अपने अहसानों तले दबाकर रखना चाहता है।



अगर आपको पसंद करने वाला आपकी सभी बातों का समर्थन करे। चाहे गलत हो या सही, तो मानना चाहिए कि सामने वाला आपको पाने के मकसद से ही आपकी गलतियों को छिपा रहा है। ऐसा वह किसी और स्थिति में भी कर सकता है।



* यदि आपका प्रेमी/प्रेमिका आपके सामने ही आपके दोस्त या सहेलियों को मोहने की कोशिश कर रहे हों तो आगे क्या होगा। यह जरूर सोचें। अगर आगे भी वह ऐसा ही व्यवहार रखता है तो वह इनसान प्रेमी तो क्या दोस्त भी नहीं बनाया जा सकता है।

* प्यार में उपहारों का बड़ा गहरा रिश्ता है। यदि कोई आपको ऐसा तोहफा दे जो आपके बहुत काम का हो, तो यह समझना होगा कि वह आपका ख्याल रखता है एवं स्वयं से अधिक आपकी भावनाओं के बारे में सोचता है। ऐसा व्यक्ति आपके लिए बेहतर साथी सिद्ध हो सकता है।

* अगर आपको पसंद करने वाला आपकी सभी बातों का समर्थन करे, चाहे गलत हो या सही, तो मानना चाहिए कि सामने वाला आपको पाने के मकसद से ही आपकी गलतियों को छिपा रहा है। ऐसा वह किसी और स्थिति में भी कर सकता है।

* यदि प्रेमी/प्रेमिका आपकी उन मामलों में भी मदद करे, जो उसकी सीमा के बाहर है तो यह मानना चाहिए कि आपको बहुत चाहता है और सदा काम करने के लिए आगे रहता है।

* अगर कभी प्यार करने वाला आपका जन्मदिन ही भूल जाए या अन्य जरूरी मौकों पर सहयोग न करे और प्यार का दम भरे तो समझ लीजिए कि वह आपके बारे में कम और खुद की रक्षा करने के बारे में अधिक सोचता है।

* यदि कोई लम्बे समय तक आपसे मिलता रहे, प्यार जताता रहे परंतु शादी की बात बिना किसी बड़े कारण के टालता रहे तो निश्चित ही वह आपसे शादी नहीं करना चाहता है। केवल टाइमपास बना रखा है। ऐसे में तत्काल निर्णय लेना चाहिए।

* शादी से पहले ही अगर साथी का व्यवहार एवं माँगें अनुचित हों तथा तरह-तरह के प्रलोभन देकर वह केवल अपनी बात ही मनवाना चाहे तो स्वयं फैसला कीजिए कि ऐसा साथी जीवन के सफर में आप से कितनी वफा निभा सकेगा।

* यदि आपको चाहने वाला आपके अलावा आपके पूरे परिवार को भी उचित मान-सम्मान देता है तथा परिवार में सदस्य की तरह ही व्यवहार करे तो मान लीजिए कि ऐसे व्यक्ति से आप शादी कर सकते हैं।

* शादी से पहले लड़के/लड़की के परिवार संबंधी एवं कामकाज के बारे में भी खोज कर लें। प्रेमी यदि बेरोजगार है तो सोच-समझकर ही प्यार को आगे बढ़ाएँ अन्यथा स्पष्ट बात कर लें।

कुल मिलाकर इन बिंदुओं के आधार पर आप कम से कम यह निष्कर्ष तो निकाल ही सकते हैं कि जिससे आप प्यार कर रहे हैं वह आपके साथ कहाँ तक चल पाएगा। यकीन मानिए इनको अपनाकर अगर आपने अपने दिल को टूटने से बचा लिया तो कभी भविष्य में यह नहीं सुनना पड़ेगा कि

'मुहब्बत है, जरा सोच समझकर रोना,
एक आँसू भी टूटा, तो सुनाई देगा।'

इसलिए प्यार में बेवफाई करने और सहने से अच्छा है कि जब प्यार हो तो प्यार को कसौटी पर घिसकर परख भी लें।
प्यार एक विलक्षण अनुभूति है। सारे संसार में इसकी खूबसूरती और मधुरता की मिसालें दी जाती हैं। इस सुकोमल भाव पर सदियों से बहुत कुछ लिखा, पढ़ा और सुना जाता रहा है। बावजूद इसके इसे समझने में भूल होती रही है। मनोवैज्ञानिकों ने इस मीठे अहसास की भी गंभीर विवेचना कर डाली। फिर भी मानव मन ने इस शब्द की आड़ में छला जाना जारी रखा है।

महान विचारक लेमेन्नाइस के अनुसार - 'जो सचमुच प्रेम करता है उस मनुष्य का ह्रदय धरती पर साक्षात स्वर्ग है। ईश्वर उस मनुष्य में बसता है क्योंकि ईश्वर प्रेम है।'

उधर दार्शनिक लूथर के विचार हैं कि 'प्रेम ईश्वर की प्रतिमा है और निष्प्राण प्रतिमा नहीं, बल्कि दैवीय प्रकृति का जीवंत सार, जिससे कल्याण के गुण छलकते रहते हैं।'

प्रेम वास्तव में सिर्फ और सिर्फ देने की उदार भावना का नाम है इसमें आदान की अपेक्षा नहीं रहती। दो व्यक्तियों के बीच जब यह बेहद कोमल रिश्ता अंकुरित होता है तब एक साथ बहुत कुछ घटित होता है। सारा वजूद एक महकता उपवन हो जाता है। रोम-रोम से सुगंध प्रस्फुटित होने लगती है। प्रेम, जिसमें खुशियों का उच्च शिखर भी मुस्कराता है और वेदना की अतल गहराई में भीगी खामोशी भी व्यक्त होती है।



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सच्चा और मासूम प्रेम बस प्रिय की समीपता का अभिलाषी होता है। उसे एकटक निहारने की भोली इच्छा से आगे शायद ही कुछ सोच पाता है। ज्यादा से ज्यादा अपने प्रिय पात्र से छोटी-छोटी सुकुमार अभिव्यक्तियाँ बाँटने की मंशा भर होती है। प्रेमियों के लिए एक-दूसरे का साथ अत्यंत मूल्यवान होता है। उसे पाने के लिए वे सदैव प्रयासरत रहते हैं।


प्यार करने वाले व्यक्ति में अपने प्रिय को सुख पहुँचाने और उसे संरक्षण देने का आवेग सबसे प्रबल होता है। वह वो सबकुछ करने को तत्पर रहता है जो उसके साथी को हर्षित कर सकता है। प्यार की गहराई इस हद तक भी होती है कि चोट एक को लगे तो दर्द दूसरे को हो। या उदास एक हो तो आँसू दूसरे की आँखों से छलक जाए। इस प्रकार की प्रगाढ़ अनुभूतियाँ प्रेम के लक्षणों में गिनी जाती हैं। प्यार जैसी नर्म नाजुक भावना की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है।

बड़ी-बड़ी त्यागमयी उदारताओं से लेकर छोटे-छोटे उपहारों तक। इन अभिव्यक्तियों का मूल्य इस बात पर निर्भर नहीं करता कि जो कुछ किया जा रहा है वह कितना महान है। बल्कि उन भावनाओं पर निर्भर करता है जो इन अभिव्यक्तियों से संप्रेषित होती है। अकसर बहुत छोटे-छोटे प्यारभरे उपहारों का महत्व तब बढ़ जाता है जब वे अपने भीतर बड़े गहरे अर्थ को समेटे हुए होते हैं।


एक प्रेमी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता जब उसे प्रेम के बदले प्रेम मिलता है। मनोविज्ञान कहता है किसी अत्यंत प्रिय पात्र द्वारा स्नेहपूर्वक स्वीकार किए जाने पर संतोष की शीतल अनुभूति होती है। मनोवैज्ञानिक वेंकर्ट का मत है - 'प्यार में व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की कामना करता है, जो एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उसकी विशेषता को कबूल करे, स्वीकारे और समझे। उसकी यह इच्छा ही अक्सर पहले प्यार का कारण बनती है। जब ऐसा शख्स मिलता है तब उसका मन ऐसी भावनात्मक संपदा से समृद्ध हो जाता है जिसका उसे पहले कभी अहसास भी नहीं हुआ था।'


मनोवैज्ञानिकों ने स्वस्थ और अस्वस्थ प्रेम को बहुत सूक्ष्मता से परिभाषित करने की कोशिश की है। उनके अनुसार जब किसी व्यक्ति का प्रेम सहजता से प्रकट ना होकर अपनी किसी विकृति, कमी या निजी समस्या से पलायन के साधन के रूप में व्यक्त होता है तो समझना चाहिए कि वहाँ एक अस्वस्थ स्थिति विद्यमान है।


उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी व्यक्ति में गहरी हीन भावना है जो खुद उसे भी प्रत्यक्ष रूप में नहीं पता। ऐसा व्यक्ति जब प्रेम में पड़ता है तब वह सामने वाले के माध्यम से अपनी उस कमी को मिटाने का पुरजोर प्रयास करता है। वास्तव में वह अपने प्रेमी या प्रेमिका का उपयोग अपनी उस कुसमंजित या कहें कि कन्फ्यूजिंग स्थिति से निपटने के लिए करता है।


मनोवैज्ञानिक युंग कहते हैं -
प्रेम करने या किसी के प्रेम पात्र बनने से यदि किसी को अपनी कोई कमी से छुटकारा मिलता है तो संभवत: यह अच्छी बात होगी। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ऐसा होगा ही। या इस तरह से उसे मुक्ति मिल ही जाएगी।




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लंबे समय तक किसी शिकायत को पालने वाला या महज कल्पना लोक में जीने वाला व्यक्ति जब एक के बाद दूसरे प्रणय संबंधों को किसी को आघात पहुँचाने वाली जीत की प्राप्ति का साधन बना लेता है तब मनोविज्ञान इसे उसकी अस्वस्थ प्रवृत्ति का लक्षण मानता है।


यह अस्वस्थ तत्व उस व्यक्ति में मौजूद होता है जो बचकाने ढंग से दूसरों पर आश्रित है। अपनी इस निर्भरता को बनाए रखने के लिए वह दूसरों को अपने प्रति प्रेमासक्त बनाने की चाल चलता है। दूसरे शब्दों में वह अपने प्रेमी पर उसी प्रकार प्रभुत्व जमाना चाहता है जैसे दूसरे उस पर शासन करते हैं।


इसी प्रकार जब एक स्त्री, स्त्रीत्व की भूमिका निभाने की अपनी क्षमता में संदेह होने के कारण एक प्रेम संबंध छोड़कर दूसरे की ओर बढ़ती है या एक पुरूष ऐसा करता है तब दोनों में अस्वस्थ तत्व दिखता है।


इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि किसी प्रेम संबंध को तभी स्वस्थ कहा जा सकता है जब वह पूर्णत: पवित्र और मानवीय दुर्बलताओं से रहित हो। ऐसी पूर्णता मानव के लिए संभव ही नहीं है। लेकिन मनोवैज्ञानिकों की इतनी तो दृढ़ मान्यता है कि वहाँ कोई अस्वस्थ मनोवृत्ति काम कर रही है जहाँ कोई व्यक्ति प्रेम की उत्तेजना के माध्यम से अपनी आंतरिक समस्याओं से मुक्ति या राहत पाना चाहता है।


मनोवैज्ञानिक हॉर्नी स्वस्थ प्रेम को संयुक्त रूप से जिम्मेदारियाँ वहन करने और साथ-साथ कार्य करने का अवसर बताते हैं। उनके अनुसार प्रेम में निष्कपटता और दिल की गहराई बहुत जरूरी है।


मैस्लो ने स्वस्थ प्रेम के जिन लक्षणों की चर्चा की है वे गंभीर और प्रभावी है। वे कहते हैं सच्चा प्यार करने वालों में ईमानदारी से पेश आने की प्रवृत्ति होती है। वे अपने को खुलकर प्रकट कर सकते हैं। वे बचाव, बहाना, छुपाना या ध्यानाकर्षण जैसे शब्दों से दूर रहते हैं। मैस्लो ने कहा है स्वस्थ प्रेम करने वाले एक-दूसरे की निजता स्वीकार करते हैं। आर्थिक या शैक्षणिक कमियों, शारीरिक या बाह्य कमियों की उन्हें चिन्ता नहीं होती जितनी व्यावहारिक गुणों की।


मनोविज्ञान प्रेम को अत्यंत ऊँचाई पर ले जाकर देखता है। उसमें मामूली सी गिरावट या फिसलन को भी बर्दाश्त नहीं करता। सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम ने एक जगह लिखा है -

जिसके साथ होकर भी तुम अकेले रह सको, वही साथ करने योग्य है। जिसके साथ होकर भी तुम्हारा अकेलापन दूषित ना हो। तुम्हारी तन्हाई, तुम्हारा एकान्त शुद्ध रहे। जो अकारण तुम्हारी तन्हाई में प्रवेश ना करे। जो तुम्हारी सीमाओं का आदर करे। जो तुम्हारे एकान्त पर आक्रामक ना हो। तुम बुलाओ तो पास आए। इतना ही पास आए जितना तुम बुलाओ। और जब तुम अपने भीतर उतर जाओ तो तुम्हें अकेला छोड़ दे।




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सच में प्यार तभी तक प्यार है जब तक उसकी शुद्धता, संवेगात्मक गहनता और विशालता कायम है। अशुद्ध, उथला, सतही, विकृतियों से ग्रस्त और संकुचित प्यार ना सिर्फ दो व्यक्तियों का क्षरणकारी है बल्कि भविष्य में दो जिन्दगियों के स्याह होने की वजह भी। क्या आप मानते हैं कि आज जब प्यार सिर्फ शारीरिक जरूरतों को पूरी करने का माध्यम बन गया है ऐसे में इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष खुलकर सामने आना चाहिए।


क्योंकि सच सिर्फ यह नहीं है कि बाहर की गंदगी हमें विनष्ट कर रही है बल्कि सच यह भी है कि हमारे अपने भीतर बहुत कुछ ऐसा पैदा हो रहा है जो हमें, हमारे अस्तित्त्व को, हमारे मूल्यों को और सभ्यता को बर्बाद कर रहा है। निश्चय ही समाधान भी कहीं और से नहीं बल्कि हमारे ही अंतरतम से आएगा अगर ईमानदार कोशिश की जाए।
कहा जाता है कि प्यार उन्मुक्त होता है। यह जात-पाँत और ऊँच-नीच के कोई बंधन नहीं देखता है। यह तो बस दिलबर की नजरों में अपने लिए असीम प्यार देखता है। ऐसे में यदि लैला-मजनूँ के दर्शन ऑफिस में ही हो जाएँ तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं है।

ऑफिस में अपने सहकर्मी के साथ रोमांस आज आम बात हो गई है। इस प्रकार के संबंधों की भी अपनी वजह व अपना वजूद है। कहते हैं प्यार की धुन जब प्रेमियों पर सवार हो जाती है तो वे ये नहीं देखते हैं कि कौन कुँवारा है और कौन शादीशुदा। उन्हें तो बस अपने दिलों में उफान भरते प्यार को ठहराव देने की ही फिक्र होती है।

बॉस के सेक्रेटरी से या सहकर्मी से प्यार की बढ़ती दासता के पीछे भी कई कारण हैं। आज कई निजी व सार्वजनिक दफ्तरों में आपको ऐसी कोई न कोई प्रेम कहानी सुनने को मिल ही जाएगी, जो वहाँ के लोगों की चर्चा का विषय बनती है। कुछ लोग अतीत में अपने ऑफिस में घटित हुए प्यार के चर्चित किस्सों की बात करते हैं तो कोई नई अँगड़ाई लेते प्यार पर ठहाके लगाते हैं।

नजदीकियाँ बन जाती हैं प्यार :-
जब नजदीकियाँ हद से अधिक बढ़ जाती हैं तो धीरे-धीरे वह प्यार में परिवर्तित हो जाती हैं। हमारे आसपास भी आपको कई ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाएँगे, जो आज भी इस प्रकार के संबंधों की मिसाल बने हुए हैं।

घर से दूरी, प्यार करना है जरूरी :-


ऑफिस रोमांस के अकसर किस्सों में प्यार इस कदर बढ़ जाता है कि प्रेमी दुनिया की परवाह किए बगैर एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं और अपने इस चार दिन के प्यार को जीवन की सच्चाई समझकर लैला-मजनूँ बन जाते हैं।



अकसर लोग अपने दिन का अधिकांश वक्त ऑफिस में बिताते हैं। घर पर तो केवल सुबह-शाम मुँह-दिखाई के रूप में उनकी हाजिरी होती है। ऐसे में ऑफिस में अपने खूबसूरत साथी या सहकर्मी से इश्क लड़ाना तो लाजमी ही है।

चोरी-छुपे प्यार के गुल खिलें :-
चोरी-छुपे एक-दूसरे को निहारना, घंटों फोन पर गप्पे लड़ाना यह सब प्रेमियों की दिनचर्या में शामिल-सा हो जाता है। ऑफिस में चोरी-छुपे होने वाले लव अफेयर की सबसे बड़ी खासिय‍त यह होती है कि इसमें लुका-छिपी का प्यार होता है, निगाहों ही निगाहों में इजहार होता है, जिसका मजा ही कुछ और होता है।

जीना-मरना तेरे लिए :-
ऑफिस रोमांस के अकसर किस्सों में प्यार इस कदर बढ़ जाता है कि प्रेमी दुनिया की परवाह किए बगैर एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं और अपने इस चार दिन के प्यार को जीवन की सच्चाई समझकर लैला-मजनूँ बन जाते हैं।

आज जहाँ हर व्यक्ति संबंधों की स्वतंत्रता तथा प्राइवेसी की बात कर रहा है, वहीं ऑफिस के भीतर इजहारे मोहब्बत करना क्या ऑफिस की गरिमा के दायरे में आता है?

कोई व्यक्ति इसे अपना प्राइवेट मैटर कहता है तो वहीं दूसरा फालतू बैठा व्यक्ति इधर-उधर कानाफूसी करके इन किस्सों को जंगल की आग की तरह फैलाता है। इसे तो हम यूँ ही कहेंगे कि जैसा व्यक्ति, वैसी सोच।
प्यार ऐसा होता है, प्यार वैसा होता है। यह हम सभी ने सुना है लेकिन क्या कभी हमने सच्चे प्यार को महसूस भी किया है? प्यार, जिसे आज भी संसार हीन दृष्टि से देखकर प्रेमियों को हँसी का पात्र बनाता है लेकिन इन बदनाम प्रेमियों में से कुछ प्रेमी ऐसे भी होते हैं, जिनका प्यार उन्हें जीवन की एक नई दिशा देता है व सफलता के द्वार खोलता है।

अक्सर हमने सुना है कि प्यार के चक्कर में पड़कर अच्छा खासा आदमी बर्बाद व नाकारा हो गया लेकिन कभी-कभी चाहे-अनचाहे हमारे कानों में ऐसे भी किस्से सुनाई देते हैं, जिनमें प्यार एक नव प्रेरणा बनकर जीवन रूपी काची माटी को एक नया आकार प्रदान करता है।

समझदार हो साथी :-
यदि आपका साथी समझदार है तो वो आपकी हर मुश्किलों को हल करके आपका जीवन सँवार देगा। मानव की कौम वैसे भी बहुत बुद्धिमान है परंतु किस वक्त पर कौन सा फैसला हमारे हित में होगा, इस दाव में अक्सर हम सभी मात खा जाते हैं। ऐसी दुविधा की स्थिति में आपका साथी ही आपको सही राह दिखा सकता है। समझदार साथी आपकी हर मुश्किलों को चुटकी में हल करके आपके चुप्पी साधे होंठों पर हँसी ला देता है।



आदमी जब मुश्किलों से हारकर टूट जाता है, तब प्यार उसकी ऊर्जा बन उसे फिर से ज‍ीवित करता है। आपका सच्चा प्यार ऐसे वक्त में भी आपका साथ निभाता है, जब दुनिया आप पर नफरत व आलोचनाओं के तीर बरसाती है।



हो गया तो कर लो कबूल :-
प्यार कभी थोपा नहीं जाता। यह तो एक अहसास है, जो जीवन में किसी के आगमन के साथ साथ स्वत: ही आता है। यह सत्य है कि सच्चा प्यार इस दुनिया में बहुत कम लोगों को मिल पाता है।

यदि आपको भी अपना सच्चा प्यार मिल गया है, जिसने आपके जीवन को खुशियों, उमंगों, उल्लास व नए सपनों से भर दिया है तो उस साथी को अपने से कभी जुदा मत होने दो तथा अपने जीवनसाथी को जिंदगी की हकीकत बनाकर अपने प्यार को सदा के लिए अपना लो।



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मुश्किलों की धूप में प्यार की बयार :-
आदमी जब मुश्किलों से हारकर टूट जाता है, तब प्यार उसकी ऊर्जा बन उसे फिर से ज‍ीवित करता है। आपका सच्चा प्यार ऐसे वक्त में भी आपका साथ निभाता है, जब दुनिया आप पर नफरत व आलोचनाओं के तीर बरसाती है। अपने साथी का हौसला आपके लड़खड़ाए कदमों को फिर से खड़ा होने की हिम्मत व दुनिया का सामना करने की ताकत देता है।

दुनिया के हर सवाल का जवाब :-
दुनिया की तो आदत होती है सवाल करने की और अच्छे को बुरा बताने की। यदि आप दुनियावालों के सवालों से परेशान होकर अपने सच्चे साथी का साथ छोड़ देते हैं तो आपसे बड़ा मूर्ख व कायर और कोई नहीं होगा। यह खूबी तो आपमें होना चाहिए कि आप दुनिया के सवालों का जवाब किस तरह से देते हैं। यदि आपका साथी आपकी हिम्मत है, आपकी प्रेरणा है तो वहीं भविष्य में लोगों के हर सवाल का जवाब बन जाएगा।

निंदक मिलेंगे हर जगह :-
ऐसा कहा जाता है कि हमेशा निंदक को अपने साथ ह‍ी रखना चाहिए, ऐसे लोग आपकी बुराई का चिट्ठा आपके सामने खोलकर रख देते हैं परंतु आज जमाना पूरी तरह से बदल गया है। अब निंदक को बगैर बुलाए ही हर जगह उपलब्ध हो जाते हैं। नए जमाने के ये निंदक आपकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने में एक पल की भी देर नहीं करते हैं।

यदि आप इन सि‍रफिरों व चापलूसों के चक्कर में आकर अपने सच्चे प्यार से जुदा होते हैं, तो आप बहुत बड़ी मूर्खता करते हैं। इस दुनिया की तो यह रीत ही है कि वो सच्चे प्रेमियों की राह में हमेशा बाधाएँ व मुश्किलें पैदा करती है। यह खूबी तो आपमें चाहिए कि आप मुस्कुराहट व आत्मविश्वास से कैसे उन लोगों के होंठ सिलते हैं।
श्रीकृष्‍ण्‍ा-रुक्मिनी की प्रेम-कथा










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विदर्भ के राजा की पुत्री थी रुक्मिनी, जिन्‍होंने कृष्‍ण्‍ा के शौर्य और तेज के बारे में काफी सुन रखा था, उनके पिता भी चा‍हते थे‍ कि कृष्‍ण का विवाह उनकी बेटी से हो जाए। लेकिन जरासंध के होते हुए यह संभव नहीं था। इधर रुक्मिनी मन-ही-मन कृष्‍ण को अपना पति मान चुकी थी और उनसे ही विवाह के सपने सँजोने लगी थी, इधर कृष्‍ण ने भी रुक्मिनी के रूप-गुणों की चर्चाएँ सुनी थी और वो भी उनसे मिलने को आतुर थे। अब दोनों का मन एक-दूसरे से मिलने के लिए विचलित होने लगा था। रुक्मिनी अपने हृदय से मात खा चुकी थीं और उनसे श्रीकृष्‍ण से दूर रह पाना संभव नहीं हो पा रहा था और उन्‍होंने अपने मन की बात संदेश के जरिए श्रीकृष्‍ण के पास भिजवा दी।

श्रीकृष्‍ण अपने भ्राता बलराम के साथ रुक्मिनी का हरण करने पहुँचे। रुक्मिनी ने स्‍वयं ही अपने अपहरण की योजना श्रीकृष्‍ण को बताई थी। श्रीकृष्‍ण ने उनका हरण कर उनसे विधिवत् विवाह किया और उन्‍हें अपनी सबसे प्रिय रानी बना कर रखा। इतने युग बीतने के बाद भी इनकी प्रेमकथा लोगों के स्‍मरण में ताजा है।
नीले सागर के तट पर खड़ी सुप्रिया समझ नहीं पा रही थी कि वह यहाँ क्यों खड़ी थी। लहरें बारी-बारी उसके पैरों को छूकर वापस चली जाती थीं। अचानक एक तेज लहर आई और ढेर सारी बूँदें छिटके हुए पारे की तरह तट के रेत पर फैल गईं। व रेत पर आकर भी सूखी नहीं थीं, बल्कि सात रंगों की आभा लिए झिलमिल कर रही थीं। उसने उन्हें छूने को हाथ बढ़ाया, तभी किसी ने उसका हाथ थाम लिया।

उसने पलटकर देखा और उसके चेहरे का रंग सिंदूरी हो गया। वही था एकदम सीधी नजर से उसे देखता हुआ। उन आँखों में गहरा प्यार था और चेहरे पर उतनी ही गहरी आत्मीयता। यह साँवला-सलोना चेहरा और उसकी जादुई मुस्कान हमेशा ही उसे इसी तरह बाँध लेती थी। उसे अपने चेहरे पर उसकी साँसों की तपिश का अहसास हुआ और तड़पकर उसने आँखें खोल दीं। उसका चेहरा पसीने से तरबतर था। खिड़की के परदे हवा से काँप रहे थे और बाहर भोर के हलके उजास में उड़ते परिंदों की खुशनुमा आवाजें थीं।

यह कैसा सपना था वह आज तक नहीं समझ पाई थी। इसी तरह वह कहीं न कहीं उसे मिल ही जाता था। किसी मंदिर में, समंदर के किनारे या फिर किसी खूबसूरत-सी वादी में। सुप्रिया उस चेहरे, उसकी हँसी और उसके माथे की एक-एक लकीर से परिचित थी। उसके हाथों की छुअन और उसके जादुई आवाज के वह इतनी करीब थी कि वह अगर धुँधलके में भी दिखता था तो वह पहचान जाती थी। पर एक बात वह कभी नहीं समझ पाई कि उसके हर सपने की कड़ी दूसरे सपने से कैसे जुड़ जाती थी।

कैप्टन विक्रम आनंद जब घाघरा नदी के किनारे बसे उस छोटे-से गाँव तक पहुँचा तो यह देखकर हैरान हो गया कि उसके वहाँ पहुँचने से पहले ही उसके मित्र अविनाश ने पूरा इंतजाम कर रखा था। रेस्ट हाउस में अटैची रख वह बाहर निकल आया। अब उसके सामने दूर तक फैला नदी का विस्तार था और पानी की सतह को छूते हलके कपासी बादलों के पहाड़। सूरज की रोशनी नदी की लहरों पर झिलमिला रही थी। इस बेहतरीन खूबसूरती से मंत्रमुग्ध होकर रह गया विक्रम। उसे संतोष-सा था कि जिस एकांत की तलाश में वह यहाँ तक आया था, उससे भी खूबसूरत एकांत उसे हासिल हो गया था।

हवा में हलकी खुनकी थी और नदी के प्रवाह का शोर धीमा। पूर्व की तरफ से दो छोटी-छोटी पालदार नावें चली आ रही थीं। कितनी देर तक वह यों ही खोया-सा देखता रहा। अचानक ही उस सन्नाटे में घोड़े की टापों की आवाज गूँजी। वह चौंक गया। उसने पलटकर देखा, नदी जहाँ से यू टर्न लेती थी, उसी के साथ गुजरती पतली-सी सड़क पर एक घुड़सवार लड़की आ रही थी। घोड़े की अलमस्त चाल से उसके कंधों तक के बाल हवा में लहरा रहे थे। डूबते सूरज की लाली उसके चेहरे को रोशन किए थी।

विक्रम एकबारगी हतप्रभ रह गया। वह उसके सामने क्षण भर के लिए रुकी। एक उड़ती हुई निगाह उस पर डाली और आगे बढ़ गई। नीली कार्डराय और ऑफ व्हाइट सिल्क की शर्ट में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। विक्रम के होंठों पर हल्की सी हँसी दौड़ गई। यह गाँव उसे किसी बड़े कैनवास की तरह ही लग रहा था, जिसमें छोटी सी छोटी चीज भी अपना अलग महत्व रखती थी और बाकायदा अपने होने का ऐलान करती थी।

अविनाश सुबह ही उसे लेने आ गया था। गाँव के बिल्कुल बीच में उसका बड़ा-सा घर था। सामने सुंदर खुला हुआ लॉन और बाउंड्री वॉल से लगे सफेद के दो पेड़। वे दोनों चाय पी रहे थे, जब वह पूजा की थाली लिए सामने से आती दिखाई दी।

उसने हलका फिरोजी सूट पहन रखा था। माथे पर रोली की बिंदी और थाली में जलते दीपक की रोशनी में चमकती पनीली आँखें।
विक्रम, यह मेरी बहन सुप्रिया है।
अविनाश ने कहा।
पर यह तो नदी किनारे घोड़े पर, वह रुक गया।
अविनाश खिलखिलाकर हँस पड़ा।



ठीक है। कहकर विक्रम खामोश हो गया। उस रात एक बार फिर विक्रम की सोच सुप्रिया की ओर मुड़ गई। एकबारगी उससे पहली मुलाकात भी याद आई। इतने विविध रूपों में जीने वाली सुप्रिया से बेहद निजी सवाल पूछना इतना आसान भी न था।



हमारी सुप्रिया अपनी जिंदगी अपनी पसंद से जीती है और उसकी पसंद मेरी पसंद है, क्योंकि मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ।
विक्रम के रेस्ट हाउस के बगल में दूर तक चला गया पलाश का जंगल था। इस समय सारे ही पेड़ सुर्ख फूलों से भर गए थे। लगता था, जैसे सारा जंगल ही शोलों में बदल गया हो। उस रात देर तक वह बरामदे में बैठा लहरों की आवाज सुनता रहा और जब नींद से पलकें भारी होने लगीं तो जाकर गहरी नींद सो गया। अगली सुबह वह और अविनाश फार्म तक टहलने गए। अविनाश का काफी बड़ा फार्म था। उसने युकलिप्टस का जंगल भी लगा रखा था। अकसर वे दोनों साथ-साथ दूर तक टहलने चले जाते थे, फिर धीरे-धीरे सुप्रिया भी उनके साथ शामिल हो गई।

एक शाम जब वे दोनों अकेले थे, अविनाश ने उसे देखते हुए अचानक एक अजीब-सा सवाल किया। विक्रम, मेरी एक मदद करोगे? दरअसल इस जगह मैं सचमुच असहाय-सा हो गया हूँ। बात यह है ‍कि तीन साल पहले ही सुप्रिया अपनी पढ़ाई खत्म कर चुकी है। कायदे से अब उसकी शादी हो जानी चाहिए। माँ-बाबू जी के न रहने से यह जिम्मेदारी मेरी हो जाती है।
तो मुश्किल क्या है? विक्रम ने पूछा।
सुप्रिया शादी से इन्कार करती है।

ऐसा क्यों है, मैं नहीं जानता और सीधे उससे पूछने की मेरी हिम्मत नहीं होती। अगर ह किसी को पसंद करती है, तो भी कहे तो सही। मैं चाहता हूँ, तुम उससे पूछ लो। वह तुमसे खुल भी गई है।
मैं भला क्या पूछूँगा उससे! विक्रम उलझकर रह गया।
मेरे लिए इतना नहीं कर सकते?

ठीक है। कहकर विक्रम खामोश हो गया। उस रात एक बार फिर विक्रम की सोच सुप्रिया की ओर मुड़ गई। एकबारगी उससे पहली मुलाकात भी याद आई। इतने विविध रूपों में जीने वाली सुप्रिया से बेहद निजी सवाल पूछना इतना आसान भी न था।
अविनाश एक हफ्ते के लिए काम से बाहर चला गया। सुप्रिया अकसर इस बीच उसके पास आती रही और वे दोनों साथ-साथ टहलने जाते रहे। वे दोनों ही नदी के किनारे टहलते हुए दूर ‍तक निकल गए और वापसी पर नदी किनारे एक बड़ी-सी चट्‍टान पर बैठ गए। सुप्रिया खामोश थी। वह नदी के दूसरे छोर को देख रही थी। जाने क्यों विक्रम को लगा कि उसकी आँखें भरी हुई हैं। प्रिया, एक बात पूछूँ? - विक्रम ने साहस कर कहा।

कहिए! उसने वैसे ही नजर नीची रखी। अविनाश तुम्हारी शादी को लेकर परेशान है। पर मैंने उनसे कह दिया है कि मैं शादी नहीं करूँगी। उसने स्पष्ट उत्तर दिया।
पूछ सकता हूँ क्यों? क्या किसी को तुम उसने बात अधूरी छोड़ दी।
मैं शायद आपको समझा नहीं पाऊँगी पर।
मुझे अपना दोस्त समझकर कह सकती हो। बात मेरे तक ही रहेगी।
सुप्रिया की आँखें झेंप गईं। उसके चेहरे पर पीड़ा झलक आई।
मैं नहीं जानती कि आप इस बात को किस तरह लेंगे, पर यह उतना ही सच है, जितना कि मेरा खुद का वजूद। काफी साल से कोई मेरे सपनों में आता है। वह मेरे इतने करीब होता है कि उसके माथे की एक-एक लकीर तक मेरी पहचानी हुई है।
वह इतना खामोश-सा रहता है। उसकी आँखें बेहद उदास हमेशा कुछ सोचती हुई-सी और उसके हाथों की छुअन से मैं इतनी परिचित हूँ कि जिस दिन भी वह मुझे दिखाई देगा, मैं उसे पहचान लूँगी।
प्रिया, तुम ठीक तो हो? किस कल्पना में जी रही हो तुम? ये किस्से-कहानियों की बातें हैं। जिंदगी से इनका संबंध नहीं।

मैं जानती थी आप मेरा विश्वास नहीं करेंगे।
यह नासमझी है। इससे बाहर निकलने की कोशिश करो। तुम्हीं सोचो, क्या तुम्हारे इस स्वप्न-पुरुष का अस्तित्व हो सकता है?
शायद। उसने कहा और देर तक चुपचाप लहरों का उठना-गिरना देखती रही। जाने कहाँ से काले बादलों का एक रेला आया और पूरे आकाश पर फैल गया।
वहाँ से न तो विक्रम उठा और न ही सुप्रिया।
विक्रम ने सुप्रिया का हाथ थामा और वापस होने के लिए उठ खड़ा हुआ। रेस्ट हाउस अभी काफी दूर था। तेज बारिश ने जैसे उनका रास्ता ही रोक लिया। वह मौसम की पहली बारिश थी, जो रुकना ही न चाहती थी। बारिश रुकने का इंतजार करते वे एक पेड़ के नीचे चले गए।

अचानक बिजली की तेज कौंध आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक चली गई और अनजाने ही विक्रम की बाँह ने सुप्रिया के कंधों को घेर लिया। कानों को बहरा कर देने वाली कड़क से सुप्रिया का सर्वांग काँप गया। उसने चौंककर विक्रम को देखा और जैसे उसकी आँखों के सामने एक भूला-सा सपना सरक आया।
पानी रुकने पर विक्रम उसे लेकर रेस्ट हाउस तक आया। उसे सिर सुखाने को तौलिया देकर वह खुद कपड़े बदलने चला गया, पर जब वह पलटकर आया, तब तक सुप्रिया जा चुकी थी।

सुप्रिया सन्नाटे में थी... एक ही दिन में जैसे उसकी दुनिया बदल गई थी पर इस पहचान का वह क्या करे। यहाँ तो राह ही बदल गई थी। एक बात बिल्कुल साफ थी कि विक्रम आनंद उसका कभी नहीं हो सकता था।

दूसरी सुबह विक्रम की आँख खुली तो उसे हल्का बुखार था। हल्का बुखार जैसे उसकी आँखों में नशा-सा दे गया था। उसने जागकर भी आँखें न खोलीं। हैरान-सा वह दिमाग पर जोर डालकर कुछ याद करने की कोशिश-सी करता रहा। पता नहीं क्यों, उसे लग रहा था कि रात जब वह गहरी नींद में था तो कोई उसके बालों में अँगुलियाँ फिराता रहा था। किसी का आँचल उसके चेहरे को छूकर चला गया था। एक प्यार-भरा अहसास और वह छुअन उसे अब भी याद थी। उसने दवा ली और फिर गहरी नींद सो गया।

शाम होने तक उसका बुखार नहीं उतरा था। चौकीदार उसे खाना खिलाकर जब चला गया तो देर तक वह चुपचाप खिड़की से बाहर देखता रहा। फिर धीरे-धीरे उसकी आँखें बंद होने लगीं। नदी की लहरें जैसे धीरे-धीरे लोरियों में बदल गईं और वह सो गया। रात काफी गुजर चुकी थी। जब विक्रम की आँख खुली।

उसने देखा, दरवाजा वैसे ही भिड़ा हुआ था। उसने करवट बदलकर धीमी रोशनी भी बुझा दी। अब कमरे में खिड़की से आती चाँद की रोशनी भर थी।

अचानक दरवाजा खुला, एक आहट उसके करीब आई। आँखों की झिरी से विक्रम ने सुप्रिया को अपने करीब आते देखा। वह उसके चेहरे पर झुकी उसे देख रही थी। उसकी आँखें भरी थीं। जैसे नींद में ही विक्रम ने हाथ बढ़ाया और उसे अपने पास खींच लिया।

क्या समझती थीं आप मैं रोज ऐसे ही सोता रहता हूँ? वह होंठ टेढ़े कर हँस दिया। सुप्रिया पसीने-पसीने हो रही थी। वह कभी भी इस नजर का सामना नहीं कर पाई थी आज भी नहीं कर पाई। विक्रम ने हौले से उसकी धानी चूड़ियाँ तिड़ककर पिघल जाएँगी। वह मंत्रमुग्ध-सा उसे देखे जा रहा था। धानी साड़ी में वह कितनी सुंदर लग रही थी। अचानक विक्रम के होंठों से गहरी साँस निकल गई।
पता है मुझे, वह दृढ़ स्वर में बोली। उसकी उदास मुस्कुराहट ने विक्रम को गहरे तक छू लिया। उस लड़की के जाने कितने रूप एकबारगी उसकी आँखों के सामने से गुजर गए। उसने और कुछ न कह उसे अपनी बाँहों में समेट लिया। सुप्रिया के चारों ओर आनंद की बाँहों को घेरा और पारिजात पुष्प की सुगंध-सी पुरुष देह परिमल...।

विक्रम की छुट्‍टियाँ खत्म हुईं और वह चला गया। सुप्रिया रोना चाहती थी, पर रोई नहीं। उसकी आँखें आँसुओं से खाली थीं। जो गलती जानकर की, उसके लिए रोना क्यों? विक्रम इस बात पर परेशान था कि सुप्रिया ने आगे से उससे कोई संपर्क न रखने की सौगंध ले ली थी। एक-एक कर पंद्रह साल गुजर गए।

सुप्रिया की सौगंध से बँधा विक्रम उधर नहीं गया, पर इस बार इधर आना हुआ तो वह अपने को रोक नहीं सका। उसे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि सुप्रिया वहाँ होगी। उस ऐकांतिक प्यार की समृति जैसे उसे विवश किए जा रही थी। सामान रेस्ट हाउस में रखकर वह बाहर निकल आया। कुछ भी नहीं बदला था।
वैसी ही डूबती शाम थी, वैसी ही नदी की लहरें। अचानक वह ठिठक गया। वहीं चट्‍टान पर बैठी सुप्रिया स्थिर दृष्टि से दूर जाती नावों को देख रही थी। सफेद साड़ी में उसका चेहरा और भी सौम्य लगता था।
विक्रम का दिल भर आया। अचानक वह मुड़ी-कैसे हो आनंद? उसके होंठों पर मीठी हँसी थी।
तुमने कैसे जाना कि मैं हूँ?

भूल गए हो तुम, कि यह आहट में पहचानती हूँ। कितने सालों से ऐसे ही सुनती आ रही हूँ। वह हँसी - वैसे स्टील ग्रे बालों में तुम और भी खूबसूरत लगने लगे हो।
अपने बेटे से मिलोगे आनंद? वह मु्स्कुराई। तब तक वह करीब आ चुका था। हल्के बादामी रंग की चैक शर्ट में वह इतना आकर्षक लग रहा था कि विक्रम को अपने किशोर दिनों की याद आ गई।
विकी, इनसे मिलो - मेजर विक्रम आनंद।
गुड इवनिंग सर!
वह हौले से मुस्कुराकर रह गया।
ममा, मैं चलूँगा.. मेरा चार्ली भूखा है। कहकर उसने घोड़े को एड़ लगाई और आगे बढ़ गया। विक्रम स्तब्ध था। कुछ देर तो उसे अपने को सँभालने में लगे। उसने धीमे से सुप्रिया को अपने पास खींच लिया।



तीसरे दिन विक्रम को वापस जाना था। बस स्टैंड तक वे दोनों उसे छोड़ने आए थे। बस चली तो वह देर तक प्रिया और विकी को देखता रहा। आगे आकर उसने आँखें पोंछ ली।



प्रिया, तुमने मुझे कुछ भी नहीं बताया यह सब कुछ कैसे, अकेले ही।
मैं सोचती थी, तुम्हें पता चलेगा तो तुम अपने आप को अपराधी महसूस करोगे, इसलिए। तुम्हारे जाने के बाद मैंने मर जाना चाहा पर तभी मुझे विकी के आने का पता चला और मैंने जीने का निश्चय कर लिया।
अविनाश? वह सिहर गया।
जानते हैं। उन्होंने ‍ही विक्रम आनंद के बेटे का नाम विकास आनंद रखा है। मेरी एक दोस्त डॉक्टर थी। मैं उसके यहाँ चली गई थी। विकी को वहीं छोड़कर आई थी। एक महीने बाद वह यहाँ इसे लेकर आई और मैंने इसे कानूनन गोद ले लिया।
विकी को पता है?
नहीं, मुझे डर लगता है। वह न जाने क्या सोचेगा।
पर उसे पता होना चाहिए...। वह अनाथ नहीं है प्रिया हमारी संतान है, हम दोनों की।
उस रात विक्रम ने विकी को खाने पर बुलाया और सारी बात धीरे-धीरे बता दी।
विकी के चेहरे के बदलते भावों से लग रहा था कि उसे गहरा आघात लगा है। सब कुछ सुन लेने के बाद उसने सिर उठाया। मुझे आप दोनों से कोई शिकायत नहीं...

पर दुख जरूर है कि ममा और आपके होते हुए भी मेरा बचपन अनाथों की तरह गुजर गया।
सॉरी बेटे! प्रिया की मजबूरी तुम समझ सकते हो और मुझे तुम्हारे बारे में कुछ पता ही नहीं था। विक्रम के स्वर में उदासी थी। अविनाश एक हफ्ते से बाहर गया हुआ था। सुप्रिया को पहली बार अविनाश की कमी का गहरा अहसास हुआ। वह बरामदे में कुर्सी पर अँधेरे में बैठी रही। उसने रोशनी तक नहीं जलाई थी। पहली बार वह अपने ही बेटे से डर गई थी।

करीब ग्यारह बजे होंगे जब विकी वापस आया और धीमे कदमों से बरामदे की सीढ़ियाँ चढ़कर उसके पास आ गया - आप जानती हैं ममा! बहुत बार आपको देखकर मैंने यही सोचा था कि काश! आप मेरी सगी माँ होतीं। पर मुझे नहीं पता था कि कभी-कभी ऊपर वाला सचमुच हमारी बात सुन लेता है। आयम प्राउड ऑफ यू ममा! उसने दोनों बाँहें प्रिया के गिर्द डाल दीं। पहली बार प्रिया अपने बेटे के कंधे पर सिर रख फूट-फूटकर रो उठीं। बरसों से जिस बेटे को वह अपना न कह पाई थी, आज उस बेटे ने इस तरह उसे स्वीकार कर उसकी म‍ुश्किल आसान कर दी थी।

तीसरे दिन विक्रम को वापस जाना था। बस स्टैंड तक वे दोनों उसे छोड़ने आए थे। बस चली तो वह देर तक प्रिया और विकी को देखता रहा। आगे आकर उसने आँखें पोंछ ली। यह कैसी जिंदगी थी, निधि और बच्चों को वह छोड़ नहीं सकता था और प्रिया और विकी उसकी जान थे। उसने धीमे से अपना माथा थाम आँखें बंद कर लीं।

साभार : समकालीन साहित्य समाचार
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कहते हैं कि प्यार करने या होने की कोई तकनीक नहीं है फिर भी कुछ लोग कुछ नुस्खे जरूर अपनाते हैं आओ जानें कि क्या हैं वे नुस्खे। यदि आप प्यार करने जा रहे हैं तो पहले कुछ सामान्य तैयारी कर लें।

मॉडर्न स्टाइल : मॉडर्न स्टाइल का अर्थ है कि आप वर्तमान में चल रही फैशन को फूहड़ न समझें। सोचें कि आज से कई वर्ष पूर्व कपड़ों में जो फैशन चलती थी लोग उसे भी फूहड़ कहते थे। तो रहें रॉक स्टाइल में। यदि सचमुच ही आप युवा हैं तो युवाओं की तरह रहना सीखें। खुद में सुधार करें। वे आदतें जिनसे आपको और आपके साथी को परेशानी हो सकती है आदि कुछ सामान्य बातों पर सोचें।

आँखों-आँखों में : आपकी आँखें सब कुछ कह देती हैं। इनका विशेष ध्यान रखें। अँखियों से न तो गोली मारे और न ही शरारत करें। इनमें गहराई नहीं है तो प्यार उथला-उथला है। समझे आँखों की भाषा। लड़कियों को तो ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। आँखे पढ़ना सीखें इससे लाभ यह कि आप धोके और फरेब से बच जाएँगे। यदि आपको लगता है कि यह निर्दोष आँखे हैं तो फिर आँखों-आँखों में प्यार होने दो।

‍मुलाकातें : पहली मुलाकात बहुत सामान्य या बहुत उत्साही भी हो सकती है। इसे एक कदम समझे। मुलाकात कौन, किस तरह से करता है इससे यह भी पता चलता है कि कौन क्या चाहता या चाहती है।

नई बातें : बातें ऐसी हो जो दिल को लुभाएँ। बातों को लम्बा खींचना हो तो किसी भी एक बात के आखिरी हिस्सें को पकड़कर एक नई बात का अविष्‍कार करें। बातों में रोचक मोड़ दें। हास्य और रोचकता से जन्मती है प्यार भरी बातें। फिर बताएँ कुछ अपने बारे में तब पूछे उसके बारे में। आपसी समझदारी की बातें करें।

प्यार का इजहार : प्यार का इजहार करने की जल्दी अवश्य करें लेकिन यह तय होने के बाद की आग दोनों तरफ बराबर है। कई मामलों में इजहार करने की जरूरत भी नहीं होती सब कुछ अंडरस्टुड होता है फिर भी इजहार करने का अपना ही मजा है। इजहार करते वक्त मूड़, समय और स्थान का ध्‍यान अवश्य रखें। सीधे-सीधे इजहार करने का भी मजा है लेकिन ‍बातों ही बातों में घुमा-फिराकर रोचक तरीके से इजहार करने का मजा जरा ज्यादा है, जो उसको भी पसंद आयेगा।



प्यार में तकरार और मनुहार का अपना ही मजा है इसके लिए पहले से प्लानिंग करें। प्यार भरे लहजे में झगड़ने का मजा लें। झगड़ते वक्त चेहरे पर बीच-बीच में मुस्कुराहट जरूर बिखेरते रहें।



समझे सुगंध की भाषा : दोनों के बीच जो भीनी-भीनी सुगंध है समझे उसकी भी भाषा। दोनों के बीच सुगंधित फुलों को अवश्य रखें। सुगंध का जितना इस्तेमाल कर सके करें, क्योंकि इससे प्यार में प्रगाढ़ता आती है। हर दिन एक नई सुगंध का प्रयोग करें। बूके हो, फूल हो या फिर स्प्रे। हो सकता है कि उसका बदन चंदन-सा महकता हो।

डेटिंग पर जाएँ : डेटिंग पर किसी अच्छे से पार्क या रेस्तराँ में बैठे। पारदर्शी, भड़काऊ या तंग वस्त्रों का प्रयोग न करें। हल्के-फुल्के वाक्यों के साथ हल्का-फुल्का ही खाएँ। तारीफ करें उसके व्यवहार और सुंदरता की। जरूरी नहीं है कि नई फिल्मों की चर्चा ही करें। यदि आप अच्छे जानकार हैं तो फिर आपके पास सब्जेक्ट की भरमार होगी। समय का अवश्य ध्यान रखें। साँझ ढलते ही घर पहुँचने की सोचें।

गिफ्‍ट दें मनपसंद : गिफ्ट देने के लिए जरूरी नहीं है कि उसका जन्मदिन ही हो। बहुत सारे मौके होते हैं जिनकी आप तलाश कर सकते हैं। गिफ्‍ट ऐसा हो जिसे लेने में उसे संकोच न हो याने की जो न ज्यादा मँहगा हो और न ज्यादा सस्ता। गिफ्‍ट बहुत बड़े पैक में न हो। कोशिश करें कि गिफ्ट हो ऐंटिक और सुंदर।

लहजा कंट्रोल करें : बोलते वक्त बोलने के लहजें पर ध्यान दें। क्या आपका लहजा इस तरह का है जो दूसरे को हर्ट करता हो? क्या आप बोलते वक्त वाकई नहीं सोचते?

झगड़ने में मजा लाएँ : प्यार में तकरार और मनुहार का अपना ही मजा है इसके लिए पहले से प्लानिंग करें। प्यार भरे लहजे में झगड़ने का मजा लें। झगड़ते वक्त चेहरे पर बीच-बीच में मुस्कुराहट जरूर बिखेरते रहें। व्यंग्य हो लेकिन हर्ट करने वाला नहीं।

अंतत: कहते हैं कि प्यार के आगे जहाँ और भी है। यदि आगे भी साथ रहने का मन बना ही लिया है तो फिर शादी के लिए प्रपोज करने में कोई बुराई नहीं है। अधिकतर भारतीय फिल्में प्यार से शुरू होती हैं और विवाह पर खत्म, लेकिन आप ऐसा न करें विवाह से प्यार को एक नया मोड़ दें। और, यदि अरेंज मैरिज करने जा रहे हैं तो विवाह से ही शुरू करें प्यार का किस्सा।
प्यार हो गया है, करें उसे निभाएँ भी। अपने प्यार से कोई समझौता नहीं करना चाहते, न करें लेकिन उसके साथ-साथ अपने करियर पर भी पूरा-पूरा ध्यान दें। प्यार कर लिया, उसी लड़की या लड़के से शादी भी कर ली लेकिन करियर बर्बाद हो गया तो क्या काम का रहा वह प्यार। यदि यही प्यार आपके करियर में रोड़ा बन गया तो अभिशाप है और सहायक बना तो वरदान सिद्ध होगा। इसलिए अपने प्यार को वरदान बनाएँ, अभिशाप नहीं।

वेलेंटाइन डे के दिन राज ने श्वेता के समक्ष अपने प्यार का इजहार किया। श्वेता ने बोला सचमुच मुझसे प्यार करते हो तो राज का कहना था अपनी जान से ज्यादा। श्वेता बोली अपने पैरों पर खड़े होकर दिखा दो तो मैं जरूर तुम्हें मिलूँगी वरना एक ख्वाब समझकर मुझे भूल जाना।

राज के समझ में नहीं आ रहा था कि इस बात पर उसे आश्चर्य हो, खुशी हो या मान ले कि उसका दिल टूट गया है। जब श्वेता की सहेलियों को इस बात का पता चला और उससे जानना चाहा कि राज को ऐसा कहने का मतलब क्या है? तब उसने बताया 'चाहती तो मैं भी राज को हूँ लेकिन इसके साथ-साथ हमें अपनी पढ़ाई पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना है। अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करना है।'

कहीं इस प्यार के चक्कर में पड़कर हम अपने लक्ष्य से भटक गए तो किस मुँह से किसी को बता पाएँगे कि हमने प्यार किया। इसलिए पहले करियर जरूरी है। श्वेता की सहेलियों को भी उसके फैसले पर बड़ा गर्व हुआ।



आज उन दोनों को अपने प्यार पर नाज है और उनका प्यार दूसरों के लिए भी उदाहरण बना कि दोनों ने प्यार को अपने करियर में बाधा नहीं बनने दिया और प्यार को वरदान बनाया।



राज की चाहत सच्ची थी। उसने बहुत अच्‍छे नंबरों के साथ अपनी एमसीए की डिग्री ली और हैदराबाद की एक बड़ी आईटी कंपनी में उसे जॉब मिला। वहीं श्वेता को भी अच्छी रैंक मिली। श्वेता के माता-पिता ने उसकी शादी की बात शुरू करने के लिए जब उसकी राय चाही तब उसने अपने प्यार का इजहार कर दिया और राज के बारे में बताया।

समय आने पर श्वेता के माता-पिता ने मिलकर दोनों की शादी तय कर दी और राजी-खुशी जीवन बिताने लगे। सही किया ना दोस्तो राज और श्वेता ने। दोनों को एक-दूसरे का प्यार भी मिला और सफल वैवाहिक जीवन भी वे जीने लगे।

आज उन दोनों को अपने प्यार पर नाज है और उनका प्यार दूसरों के लिए भी उदाहरण बना कि दोनों ने प्यार को अपने करियर में बाधा नहीं बनने दिया और प्यार को वरदान बनाया।
रति और मनोज की नई-नई शादी हुई। कुछ दिनों बाद यह नवयुगल अपने दो दोस्तों जीतेंद्र और अनुज के साथ कहीं घूमने गया। बात-बात में दोनों ने मनोज की गर्लफ्रेंड अनुष्का का जिक्र किया तो मनोज ने हँसी-हँसी में उसकी बात टाल दी और आँखों के इशारे से उन्हें इस बारे में और बात करने को मना किया।

सभी पार्टी मनाकर घर लौट आए। रति के मन में अनुष्का नाम बार-बार उठ रहा था और मनोज से इस बारे में जानने का विचार कर रही थी लेकिन हिम्मत नहीं कर पा रही थी। एक दिन दोनों जब अपनी-अपनी पुरानी बातें एक-दूसरे से शेयर कर रहे थे तो मूड देखकर रति ने अनुष्का के बारे में मनोज से पूछ ‍ही लिया।

मनोज ने कहा कि अनुष्का हम तीनों के साथ कॉलेज में हमारी ही कक्षा में पढ़ती थी तो फिर उस दिन मनोज और अनुज उसे आपकी गर्लफ्रेंड क्यों बता रहे थे? रति ने पूछा। अरे वो तो यूँ ही बोला करते हैं, कहकर बात टाल दी।

लेकिन रति के दिमाग से बात अभी गई नहीं थी और उसने ठान लिया था ‍कि इस बारे में पूरी बात जानकर ही रहेगी। धीरे-धीरे उकेरने पर मनोज ने रति को बताया कि वह अनुष्का के साथ कभी-कभी अकेले और कभी-कभी अनुज और जीतेंद्र के साथ भी चले जाया करता था।



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मनोज तो इन बातों को हल्के ले रहा था लेकिन रति को कहीं न कहीं आँख में किरकिरी बनकर चुभ रही थीं। क्योंकि वह जिस रति को आधुनिक जमाने की समझ रहा था वह पुराने ख्यालातों की वह नारी थी जोकि अपना प्यार किसी से बाँटना नहीं चाहती।

अपने पति के कामों में माँ का हस्तक्षेप भी उसे अखरता था। वह यह भूल जाती कि आखिर उसका पति उस माँ का ही तो बेटा है। मनोज किसी लड़की के बारे में मजाक में भी कुछ बात करता तो रति उसे गंभीरता से लेती। और समय निकलने के साथ-साथ मन ही मन उस पर शक करने लगी थी।

इस बीच एक दिन मनोज ने रति को बता दिया कि अनुष्का और वो एक-दूसरे को चाहते थे लेकिन मम्मी-पापा की अनुमति न मिलने के कारण दोनों ने शादी के बारे में नहीं सोचा। फिर क्या था रति के तो मानो पैरों तले जमीन खिसक गई।



आज मनोज को अपने पिताजी की बात याद कर पश्चताप हो रहा था कि क्यों वो शादी के पहले उसके प्रेमपत्र और लड़कियों द्वारा दिए गए गिफ्‍ट या तो छुपाते जाते थे या फिर उन्हें अनुपयोगी बताकर फेंक देते थे ताकि यह दिन न देखना पड़े।



जरा-जरा सी बात को रति सीधे अनुष्का से जोड़ने लगी कि अब तो तुमको मेरी हर बात में नुस्ख ही दिखेंगे क्योंकि तुम्हारी असली चाहत तो कोई और ही थी। मेरे से तो मजबूरी में तुम्हें शादी करनी पड़ी है।

उनकी छोटी-छोटी सी बात से शुरू होने वाली तू-तू मैं-मैं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी और आज बात पा‍रिवारिक अदालत तक चली गई जहाँ दोनों ने तलाक के लिए अर्जी दे रखी है।

आज मनोज को अपने पिताजी की बात याद कर पश्चताप हो रहा था कि क्यों वो शादी के पहले उसके प्रेमपत्र और लड़कियों द्वारा दिए गए गिफ्‍ट या तो छुपाते जाते थे या फिर उन्हें अनुपयोगी बताकर फेंक देते थे ताकि यह दिन न देखना पड़े।

दोस्तो हो सकता है जो बात आपको बहुत अच्छी लग रही हो वह आपको और आपके जीवनसाथी को चुभ रही हो इस बात का भान आपको समय निकलने पर ही पता चलता है। जबकि मनोज ने रति को ‍भी दिल से चाहा और उसे कभी किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी और अपना सच्चा हसमसफर होने के नाते रति से सारी बातें साफ-साफ बता दीं। क्योंकि यदि यही बातें उसे किसी दिन दूसरे से पता चलतीं तो उसे और ज्यादा दुख होता। कहावत है ना अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।