Tuesday, January 13, 2009

कहा जाता है कि प्यार उन्मुक्त होता है। यह जात-पाँत और ऊँच-नीच के कोई बंधन नहीं देखता है। यह तो बस दिलबर की नजरों में अपने लिए असीम प्यार देखता है। ऐसे में यदि लैला-मजनूँ के दर्शन ऑफिस में ही हो जाएँ तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं है।

ऑफिस में अपने सहकर्मी के साथ रोमांस आज आम बात हो गई है। इस प्रकार के संबंधों की भी अपनी वजह व अपना वजूद है। कहते हैं प्यार की धुन जब प्रेमियों पर सवार हो जाती है तो वे ये नहीं देखते हैं कि कौन कुँवारा है और कौन शादीशुदा। उन्हें तो बस अपने दिलों में उफान भरते प्यार को ठहराव देने की ही फिक्र होती है।

बॉस के सेक्रेटरी से या सहकर्मी से प्यार की बढ़ती दासता के पीछे भी कई कारण हैं। आज कई निजी व सार्वजनिक दफ्तरों में आपको ऐसी कोई न कोई प्रेम कहानी सुनने को मिल ही जाएगी, जो वहाँ के लोगों की चर्चा का विषय बनती है। कुछ लोग अतीत में अपने ऑफिस में घटित हुए प्यार के चर्चित किस्सों की बात करते हैं तो कोई नई अँगड़ाई लेते प्यार पर ठहाके लगाते हैं।

नजदीकियाँ बन जाती हैं प्यार :-
जब नजदीकियाँ हद से अधिक बढ़ जाती हैं तो धीरे-धीरे वह प्यार में परिवर्तित हो जाती हैं। हमारे आसपास भी आपको कई ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाएँगे, जो आज भी इस प्रकार के संबंधों की मिसाल बने हुए हैं।

घर से दूरी, प्यार करना है जरूरी :-


ऑफिस रोमांस के अकसर किस्सों में प्यार इस कदर बढ़ जाता है कि प्रेमी दुनिया की परवाह किए बगैर एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं और अपने इस चार दिन के प्यार को जीवन की सच्चाई समझकर लैला-मजनूँ बन जाते हैं।



अकसर लोग अपने दिन का अधिकांश वक्त ऑफिस में बिताते हैं। घर पर तो केवल सुबह-शाम मुँह-दिखाई के रूप में उनकी हाजिरी होती है। ऐसे में ऑफिस में अपने खूबसूरत साथी या सहकर्मी से इश्क लड़ाना तो लाजमी ही है।

चोरी-छुपे प्यार के गुल खिलें :-
चोरी-छुपे एक-दूसरे को निहारना, घंटों फोन पर गप्पे लड़ाना यह सब प्रेमियों की दिनचर्या में शामिल-सा हो जाता है। ऑफिस में चोरी-छुपे होने वाले लव अफेयर की सबसे बड़ी खासिय‍त यह होती है कि इसमें लुका-छिपी का प्यार होता है, निगाहों ही निगाहों में इजहार होता है, जिसका मजा ही कुछ और होता है।

जीना-मरना तेरे लिए :-
ऑफिस रोमांस के अकसर किस्सों में प्यार इस कदर बढ़ जाता है कि प्रेमी दुनिया की परवाह किए बगैर एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं और अपने इस चार दिन के प्यार को जीवन की सच्चाई समझकर लैला-मजनूँ बन जाते हैं।

आज जहाँ हर व्यक्ति संबंधों की स्वतंत्रता तथा प्राइवेसी की बात कर रहा है, वहीं ऑफिस के भीतर इजहारे मोहब्बत करना क्या ऑफिस की गरिमा के दायरे में आता है?

कोई व्यक्ति इसे अपना प्राइवेट मैटर कहता है तो वहीं दूसरा फालतू बैठा व्यक्ति इधर-उधर कानाफूसी करके इन किस्सों को जंगल की आग की तरह फैलाता है। इसे तो हम यूँ ही कहेंगे कि जैसा व्यक्ति, वैसी सोच।

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